ऐका पैशाची एक गोस्ट,पैशाची एक गंमत,
पैश्यात सुख ज्याला,पैश्यातच त्याची जन्नत.
पैश्या मध्ये वाढलेल्या कडे आहे का काही हिम्मत?
पैश्यानी विकत घेतो,पैश्यतच त्याची ताकत.
मुल्लाना पैश्याच मोठेपण पाऊसच्या गाण्यात सांगतो,
ते पैश्या मागे गेल्यावर कपाळाला हात लावतो.
पैश्याच्या त्याच पाऊसात पैश्यानिच मग भिजतो,
पैश्याचाच तालावर पाय घसरून पडतो.
पैश्याचाच नाच तो,अन् पैश्याचिच ती दारू विदेशी,
पैश्याचाच हातोड्यान स्वतच घर फोडी.
पैश्यानी डिग्री आणि मग डीग्रीतच पैशा
पैश्यतच हवस अन् पैश्यानिच वैश्या!
and lastly,the legendary song should go like this:
येरे येरे पाऊसा तुला देतो पैसा
पैसा झाला मोठा आणि माणूस झाला छोटा!!
Apoorva
Wednesday, May 27, 2009
Thursday, May 21, 2009
Politics
चंदे के मुखवटे में वसूली का चेहरा
रिश्वत लेने में लगाओ पहरा
अपने ही घर में करो धनदा
और फिर कहो पॉलिटिक्स है गंदा.
कुछ सुधारना हो तो वोट से क्या होगा
वापस कोई और पाँच साल बिगाड़ेगा
इससे अछा है के बैठे रहो घर में
और शान से कहो पॉलिटिक्स है गंदा.
"कुछ नही हो सकता इस देश का" की स्टाइल
"जागो रे" ने छाई पिलाकर सुला दिया
चार दिन मुंबई बस्सी थी अलीबाग और गोआ में
बड्डे प्यार से इन्होने वोटिंग को भुला दिया!
डिग्री में लोग खोजे है पैसो का पॅकेज
में कहता हूँ लग जाओ पॉलिटिक्स में
कितना भी कोई गाली दे दे
आख़िर यह भी तो है एक आदरणीय धनदा
तो फिर खाओ पैसे,और भरलो अपने पेट
सीना तांन के लेह्रओ भारत माता का झ्ण्डा
उपर जाके बेशरम होके विधाता से कहना
है भगवान,पॉलिटिक्स है बड्डा गंदा!!
Apoorva
रिश्वत लेने में लगाओ पहरा
अपने ही घर में करो धनदा
और फिर कहो पॉलिटिक्स है गंदा.
कुछ सुधारना हो तो वोट से क्या होगा
वापस कोई और पाँच साल बिगाड़ेगा
इससे अछा है के बैठे रहो घर में
और शान से कहो पॉलिटिक्स है गंदा.
"कुछ नही हो सकता इस देश का" की स्टाइल
"जागो रे" ने छाई पिलाकर सुला दिया
चार दिन मुंबई बस्सी थी अलीबाग और गोआ में
बड्डे प्यार से इन्होने वोटिंग को भुला दिया!
डिग्री में लोग खोजे है पैसो का पॅकेज
में कहता हूँ लग जाओ पॉलिटिक्स में
कितना भी कोई गाली दे दे
आख़िर यह भी तो है एक आदरणीय धनदा
तो फिर खाओ पैसे,और भरलो अपने पेट
सीना तांन के लेह्रओ भारत माता का झ्ण्डा
उपर जाके बेशरम होके विधाता से कहना
है भगवान,पॉलिटिक्स है बड्डा गंदा!!
Apoorva
Friday, May 15, 2009
:-(
ऐ दर्र्पोक तू क्या करेगा यहाँ
यहाँ तो तेरे साथ कोई नहीं
बस अकेले लड़ने में तुझे क्या मज्जा
जब कोई नहीं तेरी काम का यहाँ
बस बैठा रह इक कोने में तू
जहाँ कोई नहीं तेरे मतलब का
जिधर देखो वहां बस
तेरे ही कमरे में तू अकेला है!
फिर तू कहे के कुछ नहीं होगा
नहीं कोई नहीं इस देश का
तू तो बस एक लक्द्डे का वोह टुकडा
जो कटने पर भी कुछ नहीं काम का!
अरे छोड़ यह दुनिया के झमेला
मस्त हो जा खुद की ही ख़ुशी में
किसी का कुछ भी जो जाए तुझे क्या?
खुश रह तू अपने ही गम में!
कोई क्या सोचे तुझे क्या?
किसी को बुरा लगे तुझे क्या?
नशे में हो जा तू टुन्न
सो जा अपनी ही धुन में तू!
किस्मत तोह सुबकी अच्च्ची होती है
बस नजरिया सबका जुदा
क्रांति कारियों को की आवाज़
मुर्दों की वो पुकार
कैसे भुला पाएगा तू
जो आग तेरे सीने में है
जलता रेह तू उस्सी आग में
जलाता रेह तू खुदीको अब!
सो जा तू अब उस्सी बिस्तर में
सपनो में रंग जा तू
क्यों सोचता है तू इन् सब के बारें में
जब की बकवास है यह सब!
Apoorva
यहाँ तो तेरे साथ कोई नहीं
बस अकेले लड़ने में तुझे क्या मज्जा
जब कोई नहीं तेरी काम का यहाँ
बस बैठा रह इक कोने में तू
जहाँ कोई नहीं तेरे मतलब का
जिधर देखो वहां बस
तेरे ही कमरे में तू अकेला है!
फिर तू कहे के कुछ नहीं होगा
नहीं कोई नहीं इस देश का
तू तो बस एक लक्द्डे का वोह टुकडा
जो कटने पर भी कुछ नहीं काम का!
अरे छोड़ यह दुनिया के झमेला
मस्त हो जा खुद की ही ख़ुशी में
किसी का कुछ भी जो जाए तुझे क्या?
खुश रह तू अपने ही गम में!
कोई क्या सोचे तुझे क्या?
किसी को बुरा लगे तुझे क्या?
नशे में हो जा तू टुन्न
सो जा अपनी ही धुन में तू!
किस्मत तोह सुबकी अच्च्ची होती है
बस नजरिया सबका जुदा
क्रांति कारियों को की आवाज़
मुर्दों की वो पुकार
कैसे भुला पाएगा तू
जो आग तेरे सीने में है
जलता रेह तू उस्सी आग में
जलाता रेह तू खुदीको अब!
सो जा तू अब उस्सी बिस्तर में
सपनो में रंग जा तू
क्यों सोचता है तू इन् सब के बारें में
जब की बकवास है यह सब!
Apoorva
Thursday, May 7, 2009
milind ingale:
मुसळधार पाऊस खिडकीत उभं राहून पहा
बघ माझी आठवण येते का?
हात लांबव, तळहातांवर झेल पावसाचं पाणी
इवलसं तळं पिऊन टाक
बघ माझी आठवण येते का?
अपूर्व दीक्षित:
पाऔसअत जाताना असाच एकदा
पडलो मी त्या रस्त्याचा खड्यात
विचार करत बसलो मी,
खड्डा होता खोल?
की माझाच गेला तोल?
खड्ड्यात वाकून जरा बघ तय,
बघ माझी आठवन येते का?
haha!!
मुसळधार पाऊस खिडकीत उभं राहून पहा
बघ माझी आठवण येते का?
हात लांबव, तळहातांवर झेल पावसाचं पाणी
इवलसं तळं पिऊन टाक
बघ माझी आठवण येते का?
अपूर्व दीक्षित:
पाऔसअत जाताना असाच एकदा
पडलो मी त्या रस्त्याचा खड्यात
विचार करत बसलो मी,
खड्डा होता खोल?
की माझाच गेला तोल?
खड्ड्यात वाकून जरा बघ तय,
बघ माझी आठवन येते का?
haha!!
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